सूर्य ग्रहण
शहरों की भी ख़ास बात हैं कितने सारे लोगों की किस्से कहानियों से वाक़िफ होते है। किसी की दिल्लगी, किसी का पहला प्यार, किसी का पहली लड़ाई, किसी की नयी शुरुआत। वही गलियां, वही सड़के जहाँ एक पल दो लोग हँसते खिल खिलाते हैं साथ में और दूसरे वक़्त अंजानो की तरह रास्ता बदल लेते हैं। वही रेस्तरां जहाँ किसी के प्रेम की शुरुआत होती हैं, किसी के प्रेम का अंत हो रहा होता हैं। लेकिन एक बात तो हैं शहर कभी किसी से कुछ कहते नहीं, सब कुछ अपने दिल में छुपाये रहते हैं - वही तो हैं शहरों के राज़। उन्ही में से एक शहर की कहानी हैं -
2017 की बात हैं , शहर की बड़ी बड़ी इमारतों को रियर व्यू मिरर में पीछे छूटता देख उसको एक अच्छा एहसास था जैसे एक पंछी को पिंजरे से छोड़ दिया गया हो। आखिर जिसको जुगनुओं ने गले लगा कर नाचना सिखाया हो वो भला अपनी आत्मा को चार दीवारी के बीच में कैसे कैद देख सकती है। वो जीवन के एक ख़ास पड़ाव से गुज़र रही थी, एक तरफ पहले प्रेम की नई उमंग और तरंग थी और दूसरी तरफ मन में कुछ उहापोह, हिचकिचाहट, पता नहीं उसे वक़्त जीवन की किस राह पर ले जा रहा था - कुछ भी हो रोमांचक मोड़ तो बिलकुल था। उस दिन पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ने वाला था, बस वही देखने के लिए उसका काफिला निकल पड़ा। आखिर 2 घंटे बाद वो अपनी मंज़िल पहुंच ही गयी जिसका बेसब्री से इंतज़ार था।
उसने अपना कैमरा और एक्सेसरीज सेट करने के बाद एक लम्बी गहरी सांस ली। ठंडी हवाएं एक दम रोंगटे खड़े कर रही थी खैर इंतज़ार की घड़ी बीती, और एक दम अँधेरा सा छा गया था वो कहते हैं न रिंग ऑफ़ फायर - पूर्ण सूर्य ग्रहण। शायद उस क्षण को महसूस करते करते वो कुछ गुमसुम सी हो गयी थी, चिड़ियों की चहचहाट के बीच उसकी नज़र एक वृद्ध जोड़े पर पड़ी - दोनों लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठे हुए थे और थोड़ी देर बाद वो दोनों एक दूसरे की बाहों में पिघल कर एक हो गए और ग्रहण की ओर देखने लगे।
उसने थोड़ी देर बाद हिम्मत करी और उस जोड़े से जाकर हालचाल पूछा - उन्होंने एक दूसरे को देखा और बोले ये हमारा आखिरी सूर्यग्रहण है अगली बार शायद हम साथ न हो। उनका जवाब सुनकर तो उसकी आँखों में आंसू आ गये वो अपना आखिरी सूर्य ग्रहण साथ में देख रहे थे और वो पहला - जिंदगी की किताब के कितने पन्नो को पलटना रह गया हैं पता नही। उनकी आँखें देख कर लगा सच्चा प्रेम शायद ऐसा ही होता हैं - शांत, समर्पित , संपूर्ण। पिघल कर मैं तुम बन जाऊ और तुम मैं - यही प्रेम हैं। एक पल के लिए लगा की कही ये अपनी प्रियतम को रिंग ऑफ़ फायर वाली अंगूठी एक आखिरी तोहफे की तरह दे रहे थे क्या?
यही सवाल वो अपने ज़ेहन में ले कर वापस तो आ गयी अपने शहर, पर उसका मन भारी था। कई साल बीत गए, कही ऐसा तो नहीं कि उसके प्रेम को भी ग्रहण लग गया था। शायद कभी कभी लगता हैं प्रकृति के बनाये हुए सूरज, तारे , आसमान, समुन्दर, हवा साथ तो रहते है - लोग तो शायद किरदार बन कर कब आते हैं और चले जाते हैं पता नहीं चलता।
दुनिया में लाखों का मेला जुड़ा
हंसा जब जब उड़ा अकेला उड़ा
ये साल 2024 हैं , पता नहीं साढ़े साती चल रही हैं या फिर कुछ और, लेकिन फिर भी वो मन में थोड़ी सी उमंग, थोड़ी सी तरंग, कुछ उहापोह और ढेर सारा उत्साह ले कर जा रही हैं सूर्य ग्रहण देखने उसी शहर में, वो सोच रही हैं कि क्या पता इस बार शायद फिर से वो दोनों दिख जाएं, अगर दिख गए थे तो उनको गले लगाये बिना नहीं वापस नहीं आउंगी और नहीं दिखे तो आसमान की ओर देख कर पलक झुका कर नम आँखों से उनको -
दसविदानिया।
-समर्पित
