लहरों का प्रेम
कुछ समय पहले की बात हैं, मैं कैलिफ़ोर्निया के एक मशहूर ग्लास बीच गया। बीसवीं सदी में यहाँ पर कांच की बोतलों को डंप किया जाता था। समय के साथ समुन्दर की लहरों ने उन बोतलों के टुकड़ो को ऐसा तराशा हैं कि वो किसी जौहरी की कला से कम नहीं। प्रकृति के पास हमारे जैसे कोई साधन नहीं होते हैं फिर भी उन कांच के टुकड़ो को उसने ऐसा तराशा हैं जैसे सुनार की दुकान पर पन्ने, नीलम और माणिक्य तराशे हुए मिलते हैं । कितनी ताकत होती हैं ना इन लहरों में ! हवा अपनी सारी शक्ति उन लहरों को दे देती हैं। क्या पता महादेव के चरणों को छूने के बहाने हवा ऐसा करती हैं? आखिर कण कण में बसते हैं शिव! कितना अद्भुत होता हैं न समुन्दर! सूरज की रोशनी में लगता हैं की शीशे की परत बिछा दी हैं किसी ने।
प्रेम तो हमें समुद्र से सीखना चाहिए जिसकी गहराई को नापना कितना मुश्किल हैं | कितना कुछ देता हैं न हमें ये समुन्दर, शायद देने का नाम ही प्रेम हैं। लहरे एक के बाद एक रेत के एक-एक दाने को अपने में समेट लेती हैं और फिर इठला के वापस अपने पहलू में चली जाती हैं। ये जो लहरों और साहिल के बीच की अटखेलियां हैं क्या उसी को प्यार कहते हैं ? कभी आँखें बंद करके शांत मन से सुनियेगा लहरों की आवाज़ क्या कहती हैं? मुझे उस दिन ये सुनाई दिया : मीठा मीठा तू , खारा खारा मैं ! और शायद लहरें चुपके से सबके कान में यही कह जाती हैं जो भी उनकी तरफ प्रेम की निगाहों से देखता हैं।
शायद ऐसा भी हो सकता हैं कि कई मीलों का सफर तय करते करते जमीन से मिलने की ललक लिए उसके दर तक पहुंच कर अपना दम तोड़ देती हैं। लेकिन आतुरता का क्या कहना पिया की एक झलक तो देखनी ही हैं। एक स्पर्श तो चाहिए भले ही चंद सेकंड का क्यों न हो। कुछ भी हो इस मिलन से ज्यादा रोमांचकारी तो उनके मीलों का सफर रहा होगा। मिलन से ज्यादा बड़ी मिलन की आस , मिलन की तपस्या !
खैर अब एक किस्से की बात करते हैं, ग्लास बीच के किनारे लेट कर मैं क्षितिज की ओर एक टक देख रहा था , शायद मन शांत नहीं था। सामने से एक लड़की आ कर एक छोटी सी चट्टान पर खड़ी हो गयी और लहरों के साथ खेलने लगी। पीछे कुछ दूर एक लड़का अपनी प्रेमिका को खेलते हुए देख रहा था। मेरे पेरिस्कोप में ये दोनों कब आ गए मुझे एहसास भी नहीं हुआ। कई मिनट बीत गए थे और लहरो की गति थोड़ी तेज सी हो रही थी। सराहना वाले प्रेम से सुरक्षा वाले प्रेम ने बाज़ी जीत ही ली आखिर। वो लड़का कुछ बोलने की कोशिश तो कर रहा था पर बोल नहीं पा रहा था। बाद में मुझे यह एहसास हुआ कि वो मूक हैं। फिर वो खुद उस चट्टान पर चढ़ गया और अपनी प्रेमिका की पीठ पर हाथ रखा। वो भी पीछे मुड़ कर उसकी बाहों में पिघल सी गयी। दोनों आपस में हसीं ठिठोली करते करते चट्टान से नीचे उतर आये। प्रेमिका को याद आया कि उसने फोटो खिचाई नहीं हैं और वो आगे चलते हुए अपने प्रेमी को बुलाने की कोशिश करने लगी। मुझे एक दम से धक्का लगा जब ये समझ आया कि वो लड़की भी मूक हैं । भाग कर उसने अपने प्रेमी के कंधे पर हाथ रख कर इशारा किया की फोटो तो ली ही नहीं। युवक ने उसकी बात हँस के टाल दी और इशारा किया कि थोड़ा आगे ऊपर जा कर जो जगह हैं वहां से खीचेंगे। फिर वो जोड़ा ऊपर की तरफ चला गया और टाइटेनिक के अंदाज़ में फोटो खिंचाने लगा।
इधर मेरी आँखें हल्की सी नम थी। मन हल्का लग रहा था। महसूस हुआ की प्यार में शायद शब्दों की जरूरत नहीं होती हैं बस व्यक्त करना आना चाहिए। लहरों को ले लीजिये या फिर इस जोड़े को।
समर्पित
